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ग़ज़ल
वो तो अंदर की उदासी ने बचाया वर्ना
उन की मर्ज़ी तो यही थी कि शगुफ़्ता हो जाऊँ
अहमद कमाल परवाज़ी
ग़ज़ल
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
बोसे को पूछता हूँ मैं मुँह से मुझे बता कि यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जब दिल था शगुफ़्ता गुल की तरह टहनी काँटा सी चुभती थी
अब एक फ़सुर्दा दिल ले कर गुलशन की तमन्ना कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
बहुत दिल कर के होंटों की शगुफ़्ता ताज़गी दी है
चमन माँगा था पर उस ने ब-मुश्किल इक कली दी है
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
दिल-ए-अहबाब में घर है शगुफ़्ता रहती है ख़ातिर
यही जन्नत है मेरी और यही बाग़-ए-इरम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
कुछ गुल से हैं शगुफ़्ता कुछ सर्व से हैं क़द-कश
उस के ख़याल में हम देखे हैं ख़्वाब क्या क्या
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शगुफ़्ता हो न सकेगी फ़ज़ा-ए-अर्ज़-ओ-समा
किसी की जलवा-गह-ए-बाम-ओ-दर की बात करो