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ग़ज़ल
शाम की राख बदन पर मल कर क़श्क़ा खींच सितारों से
रात सिंघासन अपना ही है कह दे हिज्र के मारों से
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
बला से हो शाम की सियाही कहीं तो मंज़िल मिरी मिलेगी
उधर अँधेरे में चल पड़ूँगा जिधर मुझे रौशनी मिलेगी
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
पहाड़ों से उतरती शाम की बेचारगी देखें
दरख़्तों पर लरज़ कर बुझ रही हैं आख़िरी किरनें
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
काजल शाम की आँख से ढलके आँचल तेरे शाने से
और ज़रा ग़म भी ले आएँ यादों के वीराने से
एम कोठियावी राही
ग़ज़ल
आइला ताहिर
ग़ज़ल
कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है