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ग़ज़ल
उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम'-ए-बज़्म नूरी-ओ-नारी है जिस तरह
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
शायद था बयाज़-ए-शब में कहीं इक्सीर का नुस्ख़ा भी कोई
ऐ सुब्ह ये तेरी झोली है या दुनिया भर का सोना है
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
ख़ुदा-ओ-अहरमन बदले वो ईमान-ए-दुई बदला
हदूद-ए-ख़ैर-ओ-शर बदले मज़ाक़-ए-काफ़िरी बदला