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ग़ज़ल
जान-ए-हुस्न और काएनात-ए-रंग-ओ-बू क्या चीज़ है
तेरी क़ुर्बत कह गई ऐ यार तू क्या चीज़ है
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
ग़ज़ल
तुम ने 'ज़ाकिर' उस से जब तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लिया
ये शिकायत भी अबस है ये गिले बेकार हैं
हकीम ज़ाकिर टोंकी
ग़ज़ल
तू बिगड़ता भी है ख़ास अपने ही अंदाज़ के साथ
फूल खिलते हैं तिरे शोला-ए-आवाज़ के साथ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा
दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा