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हूँ कम-निगाही से नालाँ मैं हाशिए की तरह

अनवर हुसैन अनवर

हूँ कम-निगाही से नालाँ मैं हाशिए की तरह

अनवर हुसैन अनवर

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    हूँ कम-निगाही से नालाँ मैं हाशिए की तरह

    नहीं मैं टूट के बिखरा हूँ हौसले की तरह

    अब ऐसे दिल का कोई क़द्र-दाँ भी क्या होगा

    हज़ार टुकड़ों में बिखरा जो आइने की तरह

    तुम्हारी याद का साया था या कि था तूफ़ाँ

    उदास कर गया सुनसान रास्ते की तरह

    मिटे मिटे सही कुछ नक़्श छोड़ जाऊँगा

    तलाश होगी मिरी गुम-शुदा पते की तरह

    ये बेवफ़ाई भी सहरा नहीं तो फिर क्या है

    सिमटती ही नहीं बे-रब्त फ़ासले की तरह

    क्यों जुगनू आँख के कोने में गए हैं अभी

    उछालता है मुझे कौन क़हक़हे की तरह

    बिखर जाए कहीं ख़्वाब आँख खुलते ही

    सँभाल कर इसे रखना है आइने की तरह

    कोई तो ऐसी सनद छोड़ के मैं जाऊँगा

    भूल पाएँ मुझे लोग हादसे की तरह

    थकन से चूर हूँ नज़रें हैं आसमाँ की तरह

    शिकस्त मान नहीं सकता हौसले की तरह

    ये आरज़ू है कि हस्सास दिल को छू जाऊँ

    मिरी भी क़द्र हो बे-लाग तब्सिरे की तरह

    बरस रहा हूँ क्यों बंजर ज़मीन पर 'अनवर'

    बरत रहा है मुझे कौन तजरबे की तरह

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