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ग़ज़ल
वो शुमार-ए-माह-ओ-नुजूम हो कि ख़ुमार-ए-तर्क-ए-रुसूम हो
कोई बार सोच विचार ही का पड़ा न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
तमाशा-ए-ब-यक-कफ़ बुर्दन-ए-सद-दिल-पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहुत बे-सूद है लेकिन अभी कुछ और दिन मुझ को
सवाद-ए-सुब्ह में रह कर शुमार-ए-शाम करना है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
तिरे फ़िराक़ की सदियाँ तिरे विसाल के पल
शुमार-ए-उम्र में ये माह ओ साल से कुछ हैं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सोज़िश-ए-दाग़-ओ-आबला गर्द-ए-अलम शुमार-ए-दम
हिज्र में चारों हैं बहम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद