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ग़ज़ल
इजाज़त दे कि अपनी दास्तान-ए-ग़म बयाँ कर लें
तिरे एहसास और अपनी ज़बाँ का इम्तिहाँ कर लें
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
जिस में थे जल्वे तिरे वो आइना क्या हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो मेरे तंगना-ए-दिल में तुझ को जल्वा-गर देखा
मिरी नज़रों ने हैरत से मुझी को उम्र भर देखा
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
सुबू पर जाम पर शीशे पे पैमाने पे क्या गुज़री
न जाने मैं ने तौबा की तो मय-ख़ाने पे क्या गुज़री
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
पर्दे ही पर्दे में अपना राज़ इफ़्शा कर दिया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
न वो फ़रियाद का मतलब न मंशा-ए-फ़ुग़ाँ समझे
हम आज अपनी शब-ए-ग़म की ग़लत-सामानियाँ समझे
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
फिर अपनी ख़ाक से पैदा दिल-ए-बर्बाद होता है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
निगाह-ए-यास हो जाती है दिल की तर्जुमाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
तो इस बातिल--कदे में ज़िंदगी दुश्वार हो जाए