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ग़ज़ल
क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
'नाज़िर' मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार में कुछ लोग
हालात की तल्ख़ी को डुबोने नहीं देते
मंज़ूर-उल-हक़ नाज़िर
ग़ज़ल
सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की कियारी है
परी भी अब तो बाज़ी हुस्न में समधन से मारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गुल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
गुज़र गई है शब-ए-ग़म सहर की बात करो