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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
फिर लब पे तेरे कलमा-ए-अफ़्सोस किस लिए
मैं ने तो तेरे जब्र का शिकवा नहीं किया
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
ग़ज़ल
मरेंगे उस पे कलमा पढ़ के उस का जान हम देंगे
ख़ुदाई भर में हम को आज़माए जिस का जी चाहे