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ग़ज़ल
अभी मुंतशिर न हो अजनबी न विसाल-रुत के करम जता
जो तिरी तलाश में गुम हुए कभी उन दिनों का हिसाब कर
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
दिल-ए-सोज़-आशना के जल्वे थे जो मुंतशिर हो कर
फ़ज़ा-ए-दहर में चमका किए बर्क़ ओ शरर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
वही नाला वही नग़्मा बस इक तफ़रीक़-ए-लफ़्ज़ी है
क़फ़स को मुंतशिर कर दो नशेमन नाम हो जाए
शेरी भोपाली
ग़ज़ल
मोहब्बत की जो फैली है ये निकहत बाग़-ए-आलम में
हुई है मुंतशिर ख़ुशबू-ए-यार आहिस्ता आहिस्ता
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
फ़ना इसी रंग पर है क़ाइम फ़लक वही चाल चल रहा है
शिकस्ता ओ मुंतशिर है वो कल जो आज साँचे में ढल रहा है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं