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नज़्म
ये कैसी लज़्ज़त से जिस्म शल हो रहा है मेरा
ये क्या मज़ा है कि जिस से है उज़्व उज़्व बोझल
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
दौर-दौरा लखनऊ में भी था क़ब्ल-अज़-इंक़लाब
कर लिया था नुक्ता-संजों ने इसी को इंतिख़ाब