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नज़्म
ऐ 'हफ़ीज़' इन नींद के मातों की मंज़िल से निकल
काम है दरपेश दाम-ए-दीदा-ओ-दिल से निकल
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
क़ुर्ब की हद से तजावुज़ हो तो दरपेश-ए-फ़ना
इंतिहा दूरी की छू लें तो बिखर ही जाएँ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
ये मसअला है दरपेश यहाँ मरना या जीना अच्छा है
हस्ती का ज़हर-भरा साग़र तोड़ें या पीना अच्छा है