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नज़्म
तुम्हारे दिल ने उसे मुंतख़ब किया कि जिसे
तुम्हारे ग़म को समझने का भी शुऊर नहीं
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
मगर ऐसी कहानियाँ किसी को सुनाई नहीं जातीं
वर्ना लोग ख़ुद को उन का किरदार समझने लगते हैं