aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سنجها"
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी थाबिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
सर-ए-बाज़ार दरीचे में सर-ए-बिस्तर-ए-संजाब कभीतू मेरे सामने आईना रही
नवा-संजान-संगम को बता दोहरीफ़-ए-फ़ारयाबी आ गया है
फिर ज़मीं बन गई ग़ैरत-दह-ए-गुलज़ार-ए-नईमख़ाक है तख़्ता-ए-गुल बिस्तर-ए-संजाब लिए
ज़िंदगी तेरे लिए बिस्तर-ए-संजाब-ओ-समूरऔर मेरे लिए अफ़रंग की दरयूज़ा-गरी
मेरे अंजाम का आग़ाज़ है तूतू है आसूदा-ए-फ़र्श-ए-संजाब
तहज़ीब के गूँगे जिस्मों कीसंजाब बिछाई जाती है
बिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब भी याद आता हैग़म-ओ-आलाम का ज़हराब भी याद आता है
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