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नज़्म
मेरे आग़ोश में पिन्हाँ है मता-ए-'साइल'
अब भी 'सीमाब' से रक़्सिंदा है मेरी महफ़िल
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादा
उसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
जौन एलिया
नज़्म
मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दिया तूफ़ान-ए-मग़रिब ने
तलातुम-हा-ए-दरिया ही से है गौहर की सैराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फूट निकला दर-ओ-दीवार से सैलाब-ए-नशात
अल्लाह अल्लाह मिरा कैफ़-ए-नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वतन से रुख़्सत-ए-'सिद्धार्थ' 'राम' का बन-बास
वफ़ा के ब'अद भी 'सीता' की वो जिला-वतनी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
है दश्त अब भी दश्त मगर ख़ून-ए-पा से 'फ़ैज़'
सैराब चंद ख़ार-ए-मुग़ीलाँ हुए तो हैं