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नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
शरफ़ में बढ़ के सुरय्या से मुश्त-ए-ख़ाक उस की
कि हर शरफ़ है इसी दर्ज का दुर-ए-मकनूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
फैलती हैं कहकशाएँ रफ़्ता रफ़्ता हर तरफ़
है नई साइंस में 'हाफ़िज़' इन्हें हासिल शरफ़
हाफ़िज़ कर्नाटकी
नज़्म
ज़ईफ़ सुन के ये आपे से हो गया बाहर
कहा कि शर्म हो तुम पर शरीर-ओ-बद अख़्तर