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नज़्म
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नशात इस विसाल-ए-रह-गुज़र की ना-गहाँ मुझे निगल गई
यही प्याला-ओ-सुराही-ओ-सुबू का मरहला है वो
नून मीम राशिद
नज़्म
जब भी साक़ी ने सुराही को दिया इज़्न-ए-ख़िराम
बज़्म की बज़्म पुकारेगी कि आग़ाज़ में तू
अहमद फ़राज़
नज़्म
अब्बास ताबिश
नज़्म
वो साँवले-पन पर मैदाँ के हल्की सी सबाहत दौड़ चली
थोड़ा सा उभर कर बादल से वो चाँद जबीं झलकाने लगा