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नज़्म
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का
इस ऐश मज़े के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
चौराहों पर खड़े हुए बकरों के हैं जो ग़ोल
तू उन के मुँह को खोल के दाँतों को मत टटोल
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
क़दम बोसों के भयानक ग़ोल को जो दीमक-ओ-जरासीम की सूरत
निज़ाम-ए-फिक्र-ओ-फ़न बरबाद करता है
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
चमकती आँख वाले भेड़ियों के ग़ोल ले के आ गई
क़बा-ए-ज़िंदगी वो फाड़ ले गए नुकीले नाख़ुनों से उस तरह
अली अकबर नातिक़
नज़्म
और उन तवाना जवाँ परिंदों के ग़ोल कोशाँ हैं आज भी उस जगह
जहाँ पर हम अपनी सारी सलाहियत आज़मा चुके हैं