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नज़्म
तारीख़ में क़ौमों की उभरे कैसे कैसे मुम्ताज़ बशर
कुछ मुल्क के तख़्त-नशीं कुछ तख़्त-फ़लक के ताज-बसर
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
जो सदा हुस्न की अक़्लीम में मुम्ताज़ रहे
दिल के आईने में उतरी है वो तस्वीर अब के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आप मैदान-ए-सुख़न में भी थे सब से मुम्ताज़
साथ ही इक बड़े नस्सार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए
ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिल की ठंडक और आँखों की ज़िया हैं बेटियाँ
जल के ख़ुद जो रौशनी दे वो दिया हैं बेटियाँ
रूबीना मुमताज़ रूबी
नज़्म
किस के चेहरे में तलाशूँ तेरे चेहरे की झलक
किस के आँचल में मिलेगी तेरी ममता की महक