हमल-सरा
रोचक तथ्य
Inspired from the famous Shah Bano case.
दादी-अम्माँ...
(बस्ती के सब से मुम्ताज़
घराने की बेटी...
सब से मुअज़्ज़ज़
आँगन की दुल्हन
माशा-अल्लाह
सत्तर के पीटे में होंगी)
अपना... इस्तेहक़ाक़ माँगती हैं
दादा जान कि
दस कम साठ बरस तक उन से
अंधी घुप काली रातों में
छुप छुप के मिलने आए
बीवी की ज़रख़ेज़ आँखों में
सिर्फ़ औलाद-ए-नरीना के
ख़्वाब उगा के चले गए...
ये शौहर के रस्ते में
हाएल न हुईं
दिल के टुकड़े
हॉस्टलों में पले-बढ़े
हैफ़ कि उन के दुख-सुख में
शामिल न हुईं
दादा-जान की सख़्त तबीअत ने
इस का मौक़ा' ही न दिया
ये वो नातिक़
जो ख़ामोश रहीं...
इस ना-ज़ेबा ख़ामोशी में
आग लगाने के दिन आए
अब अपने चक़माक़ माँगती है...
उन के अंदर तन्हाई का ज़हर उतरता चला गया
(और ज़माना
इर्द-गर्द से
परछाईं की तरह गुज़रता चला गया)
सोग में हैं,
तिरयाक़ माँगती हैं...
एक जनम तक
अंधी गूँगी बहरी बन के
अपने ही घर में बे-दख़्ल,
बे-क़दरी के सख़ी-हसन में दफ़्न रहीं
आज नए आफ़ाक़ माँगती हैं
दादी अमाँ तलाक़ माँगती हैं
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