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नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए
ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तू ने दुनिया की निगाहों से जो बच कर लिक्खे
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
इस से पहले कि वहाँ जाएँ तो ये दुख भी न हो
ये निशानी कि वो दरवाज़ा खुला है अब भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरी मोहब्बत की आग में जल रहा है सहरा-ए-नज्द अब तक
जमाल-ए-ज़ोहरा तिरे मलाएक फ़रेब जल्वों की इक निशानी