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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तुम तन्हा तन्हा जलते रहे तुम तन्हा तन्हा चलते रहे
सुनो तन्हा चलना खेल नहीं, चलो आओ मिरे हम-राह चलो
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
ये सच कि सुहाने माज़ी के लम्हों को भुलाना खेल नहीं
ये सच कि भड़कते शोलों से दामन को बचाना खेल नहीं
आमिर उस्मानी
नज़्म
न जिस के दिल के दराँ कुंजियों से खोल सका
वो माँ मैं पैसे भी जिस के कभी चुरा न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जब मेरा जी चाहे मैं जादू के खेल दिखा सकता हूँ
आँधी बन कर चल सकता हूँ बादल बन कर छा सकता हूँ