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नज़्म
ख़ुतूत-ए-रुख में जल्वा-गर वफ़ा के नक़्श सर-ब-सर
दिल-ए-ग़नी में कुल हिसाब-ए-दोस्ताँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
घटा की घन-गरज से क़ल्ब-ए-गीती काँप जाता है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
अब वो नालों की गरज है अब न वो शोर-ए-फ़ुग़ाँ
अब न उठता है कलेजा से मोहब्बत का धुआँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फूँक दो क़स्र को गर कुन का तमाशा है यही
ज़िंदगी छीन लो दुनिया से जो दुनिया है यही