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नज़्म
मैं खो गया हूँ कई बार इस नज़ारे में
वो उस की गहरी जड़ें थीं कि ज़िंदगी की जड़ें?
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
साँसों में वो गहरा पन है जैसे बे-सुध सोई हुई है
दिल में सौ अरमान हैं लेकिन मेरी सम्त निगाह नहीं है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
कितना गहरा है मोहब्बत के तक़ाज़ों का तज़ाद
मैं तो कहता हूँ कि तुम प्यार से झोली भर दो
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ये मेरी मोहब्बत का गहरा तअ'स्सुब भी हो सकता है
पर ये आफ़ाक़ियत काएनाती मोहब्बत का रद्द-ए-अमल है