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नज़्म
तुम्हारे दिल के इस दुनिया से कैसे सिलसिले होंगे
तुम्हें कैसे गुमाँ होंगे तुम्हें कैसे गिले होंगे
जौन एलिया
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
गिला इस का नहीं क्यूँ तुम ने मुझ से अपना मुँह मोड़ा
शौकत परदेसी
नज़्म
फिर भी होंटों पे कोई शिकवा गिला कुछ भी नहीं
मेरे दिन रात की मेहनत का सिला कुछ भी नहीं
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
दिलावर फ़िगार
नज़्म
अपनी फ़ितरत की बुलंदी पे मुझे नाज़ है कब
हाँ तिरी पस्त-निगाही से गिला है मुझ को