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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
गर ये सच है तो तिरे अद्ल से इंकार करूँ?
उन की मानूँ कि तिरी ज़ात का इक़रार करूँ?