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नज़्म
क़ल्ब-ए-मुज़्तर से पुकारी हुई आवाज़ से तेज़
आप की नज़रों के तीर-ए-असर-अंदाज़ से तेज़
शमीम फ़ातिमा जाफ़री
नज़्म
दिनों हफ़्तों महीनों सोचता हूँ
किसी ज्वाला-मुखी सा खौलता हूँ अपने पैकर की गुफाओं में
हुरमतुल इकराम
नज़्म
पामाल-ए-फ़क़्र-ओ-ज़िल्लत हैं इज़्ज़-ओ-शान वाले
सैद-ए-ग़म-ओ-अलम हैं तीर-ओ-कमान वाले
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
तरकश में मिरे तीर बहुत कम हैं मगर हैं
ऐसे कि उड़ा दें क़दर-अंदाज़ के जो होश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई
नीम-शब की ख़ामुशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई