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नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कोई अंजुम आसमाँ का और सुबुक परवाज़-ए-शौक़
रहनुमा है क्या तिरा दिल-दादा-ए-अंदाज़-ए-शौक़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
उम्र भर की जिद्द-ओ-जोहद-ए-शौक़ का हासिल रहे
तीरा-बख़्त आँखों में ऐसे ख़्वाब के पैकर बसे
महमूद अयाज़
नज़्म
क़ुफ़्ल-ए-बाब-ए-शौक़ थीं माहौल की ख़ामोशियाँ
दफ़अतन काफ़िर पपीहा बोल उठा अब क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हाँ अभी दुनिया-ए-ज़ब्त-ए-शौक़ का हूँ शहरयार
हाँ अभी तुझ पर नहीं मेरी तबाही का मदार
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
मोहम्मद अहसन वाहिदी
नज़्म
जिस की नवा-ए-दिल-सिताँ ज़ख़्मा-ए-साज़-ए-शौक़ थी
कोई बताओ उस बुत-ए-ग़ुंचा-दहन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरी इक इक मौज थी जब आह तूफ़ाँ-कोश-ए-शौक़
हल्क़ा-ए-गिर्दाब था जब हाला-ए-आग़ोश-ए-शौक़