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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ
दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बहुत दुख देगी तुम में फ़िक्र और फ़न की नुमू मुझ को
तुम्हारे वास्ते बेहद सहूलत चाहता हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
सफ़ीया चौधरी
नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब मर्ग फिरा कर चाबुक को ये बैल बदन का हाँकेगा
कोई नाज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टाँकेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे