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नज़्म
उन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई बरनाई भी
माओं के जवाँ बेटे भी गए बहनों के चहेते भाई भी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है!
सोचा था बहन भाई दरिया हैं मोहब्बत के
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
मुझे इस ज़मीन पर चलते हुए अट्ठाईस बरस हो गए
बाप, माँ, बहनों, भाइयों और महबूबाओं के दरमियान
सरवत हुसैन
नज़्म
ये वो गुल थे जिन्हें अरबाब-ए-नज़र ने रोया
भाई ने बहनों ने मादर ने पिदर ने रोया
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
सब भाई बहनों की चुप में मिरी चुप भी हो
शाम की सेज पर बाप के जिस्म से मेरे बाज़ू उगें
जावेद अनवर
नज़्म
मैं ने इस्मत के सनम ख़ानों को मिस्मार किया
अपनी बहनों को सुपुर्द-ए-सर-ए-बाज़ार किया
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
प्रयाग पे बिछड़ी हुई बहनें जो मिली हैं
पानी की ज़मीं पर भी तो कलियाँ सी खिली हैं