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नज़्म
ज़िक्र-ए-अरब के सोज़ में, फ़िक्र-ए-अजम के साज़ में
ने अरबी मुशाहिदात, ने अजमी तख़य्युलात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिर पूछा उस ने कहिए ये है दिल का तूर क्या
इस के मुशाहिदे में है खुलता ज़ुहूर क्या
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बदल दी नौजवान-ए-हिन्द ने तक़दीर ज़िंदाँ की
मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िंदाँ की
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
बड़े ही शौक़ से मुझ को पढाती हैं लिखाती हैं
बड़े ही प्यार से जो पूछता हूँ वो बताती हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नज़्म
जो कोशिश मुत्तहिद हो कर कहीं इक बार हो जाए
यक़ीं है मुल्क की क़िस्मत का बेड़ा पार हो जाए
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ज़ुल्म किए हैं तू ने जो ज़ुल्म के शाहिदों से पूछ
क़त्ल किए हैं किस क़दर अपने मुजाहिदों से पूछ