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नज़्म
लफ़्ज़ों में रक़्स-ओ-रंग-ओ-रवानी तुझी से है
फ़क़्र-ए-गदा में फ़र्र-ए-कियानी तुझी से है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क्या ज़रूरी है हर इक राह में जुगनू चमकीं
क्या ज़रूरी है कि अश्कों को रवानी भी मिले
मुनव्वर राना
नज़्म
वो क़ल्ब और ज़ेहन का तसादुम जो गुफ़्तुगू में रवाँ-दवाँ था
वो उस के अल्फ़ाज़ की रवानी
तारिक़ क़मर
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मुक़य्यद अब नहीं 'इक़बाल' अपने जिस्म-ए-फ़ानी में
नहीं वो बंद हाइल आज दरिया की रवानी में
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है
रवानी तर्क कर दें बर्क़ के धारे ये मुमकिन है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
मैं अब मानता हूँ कि तू ने रवानी में अपनी बहुत दूर रौज़न से धुँदले
सितारे भी देखे हैं लाखों
मीराजी
नज़्म
वो भी कुछ उर्दू में कर लेती थी टामक-टोइय्यां
मैं भी इंग्लिश बोल लेता था रवानी के बग़ैर