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नज़्म
किसी की बस और किसी की बी-सी निकल रही है
अक़ीला ख़ाला के दोनों हाथों में आठ थैले लटक रहे हैं
इमरान शमशाद नरमी
नज़्म
ब-सू-ए-नौहा-आबाद-ए-जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
निकल कर आ रही है इक गुलिस्तान-ए-तरन्नुम से
नून मीम राशिद
नज़्म
यही दस बीस अगर हैं कुश्तागान-ए-ख़ंजर-अंदाज़ी
तो मुझ को सुस्ती-ए-बाज़ू-ए-क़ातिल की शिकायत है
शिबली नोमानी
नज़्म
अभी तो दर्द के आसार कुछ बाक़ी हैं सीने में
अभी तो बीस ही नाग़े हुए हैं इस महीने में