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नज़्म
क्या रेनी ख़ंदक़ रन्द बड़े क्या ब्रिज कंगूरा अनमोला
गढ़ कोट रहकला तोप क़िला क्या शीशा दारू और गोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
टोपी पुरानी दो तो वो जाने कुलाह-ए-जिस्म
क्यूँकर न जी को उस चमन-ए-हुस्न के हो ग़म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हल्की टोपी सर पे रखते हैं तो चकराता है सर
और जूते की तरफ़ बढ़िए तो झुक जाता है सर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हुकूमत के मज़ाहिर जंग के पुर-हौल नक़्शे हैं
कुदालों के मुक़ाबिल तोप बंदूक़ें हैं नेज़े हैं