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नज़्म
दर्द-ए-तिफ़ली में अगर कोई रुलाता था मुझे
शोरिश-ए-ज़ंजीर-ए-दर में लुत्फ़ आता था मुझे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अहद-ए-तिफ़्ली ही से दुनिया के बड़े ज़ुल्म सहे
अब भी हर अहल-ए-सुख़न आप को उस्ताद कहे
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
रफ़्ता ओ हाज़िर को गोया पा-ब-पा इस ने किया
अहद-ए-तिफ़्ली से मुझे फिर आश्ना इस ने किया
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
स्वर्ण-सिंह इस ख़ाक का बेटा है हम-मकतब मिरा
अहद-ए-तिफ़्ली में था जो हम-राज़-ओ-हम-मशरब मिरा
अर्श मलसियानी
नज़्म
तिरे साए में बचपन की सुहानी यादगारें हैं
हमारे अहद-ए-गुम-गश्ता के लम्हों की क़तारें हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
गुलू में तेरी उल्फ़त के तराने सूख जाएँगे
मबादा याद-हा-ए-अहद-ए-माज़ी महव हो जाएँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
न ढूँड पाई मुदावा-ए-ज़ख़्म-ज़ार-ए-तमन्ना
समझ सकी न तक़ाज़ा-ए-अहद-ए-तिफ़्ल-कुशी वो
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
मगर मुझ को ख़याल आता था अक्सर उस ज़माने में
कि उस की हैरत-ए-तिफ़्ली है क्यूँ गुम उस फ़साने में
अख़्तर शीरानी
नज़्म
एक ख़िज़्र-ए-अस्र-ए-हाज़िर इक कलीम-ए-अहद-ए-नौ
एक सद्र-ए-महफ़िल-ए-रुहानियाँ पैदा हुआ