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नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
अब तो इस बाग़ पे है सब की मोहब्बत की निगाह
जो कि पौदे थे शजर हो गए माशा-अल्लाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ज़िक्र-ए-मा'बूद-ए-हक़ीक़ी में ज़बान से 'शातिर'
साया-ए-रहमत-ए-ग़फ़्फ़ार गुरु-नानक थे
शातिर अमृतसरी
नज़्म
मगर ये बात 'क़ासिर' इन लबों से कब सुनी मैं ने
इसे मालूम था शायद कि माएँ मर नहीं सकतीं