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नज़्म
नज़र से तमकनत ले कर मज़ाक़-ए-आजिज़ी दे दे
मगर हाँ बेंच के बदले उसे सोफ़े पे बिठला दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो माँ मैं जिस से मोहब्बत के बोल सुन न सका
वो माँ कि भेंच के जिस को कभी मैं सो न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अपनी ग़ैरत बेच डालीं अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है