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नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
किशवर-ए-मग़रिब अलम-बरदार-ए-तहज़ीब-ए-जदीद
आ दिखा दूँ मैं तुझे अनवार-ए-तहज़ीब-ए-जदीद