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नज़्म
ऐ ख़ुदा शम-ए-मोहब्बत को फ़रोज़ाँ कर दे
दाग़-ए-दिल को मिरे सद-रश्क-ए-गुलिस्ताँ कर दे
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
दीदा-ए-अफ़्लाक ने देखे बहुत इंक़िलाब
अहद-ए-कुहन के निशाँ महव हुए मिस्ल-ए-ख़्वाब
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
ऐ कि दिल तेरा है फ़िक्र-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम में
ज़हर भी होता है अक्सर ख़ूबसूरत जाम में
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
हुस्न की मस्लहतों का है तक़ाज़ा दिल से
कि निकल जाए ग़म-ए-इश्क़ का सौदा दिल से
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
आँख वालो हुस्न-ए-वहदत का तमाशा क्यों न हो
दिल है तो राज़-ए-हक़ीक़त की तमन्ना क्यों न हो