बोल ऐ शाइ'र ऐ नग़्मा-गर
बेचेगा फ़न को बेचेगा
बोल अपने मन को बेचेगा
अपने शह-पारे बेचेगा अपनी तहरीरें बेचेगा
ये अपनी बरहना-गुफ़्तारी ये शोला-बयानी बेचेगा
या'नी जो तिरे लफ़्ज़ों में है ख़ंजर की रवानी बेचेगा
ढलता है जो तेरे ख़्वाबों में वो रंग-ए-बहाराँ बेचेगा
पलता है जो तेरे सीने में वो ख़ूनीं तूफ़ाँ बेचेगा
जो पर्दा-ए-मुस्तक़बिल में हैं क्या वो तनवीरें बेचेगा
जिन इंसानों को जगाता है उन की तक़दीरें बेचेगा
फ़न की तासीर को बेचेगा
बेचेगा ज़मीर को बेचेगा
बोल ऐ शाइ'र ऐ नग़्मा-गर
बेचेगा
हम नुक्ता-दान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
हम क़द्र-शनास-इलम-ओ--हुनर
तेरी ख़िदमत का सिला देंगे तेरी मेहनत का समर देंगे
जीवन की रातों में ज़र-कार उजाला कर देंगे
चाँदी के खनकते सिक्कों से हम तेरी जेबें भर देंगे
बोल ऐ शाइ'र क्या कहता है
तू किस दुनिया में रहता है
ऐ नग़्मा-गर
इन सूखे हाथों से फ़न का ऐवान सजाएगा क्यूँकर
फ़ाक़ों के अंधेरे में रह कर शह-कार बनाएगा क्यूँकर
इफ़्लास के आलम में क्यूँ-कर तू रंगीं ग़ज़लें लिक्खेगा
रोटी को तरसता रहता है क्या खा कर नज़्में लिखेगा
जीना हो जो इस दुनिया में तो फिर बाज़ार में आ दूकान लगा
कुछ दाम-ओ-दिरम की बातें कर बिकने वाला सामान सजा
हाँ बेच दे अपनी जुरअत को आ जाएगी चेहरे पर सुर्ख़ी
हाँ बेच क़लम की ताक़त को वर्ना ये तुझे ले डूबेगी
इस एक क़लम का ज़िक्र ही क्या इंसान ख़रीदे हैं हम ने
मज़हब के दाम चुकाए हैं ईमान ख़रीदे हैं हम ने
हर शय नीलाम पे चढ़ती है वो धरती हो या औज-ए-फ़लक
हर चीज़ यहाँ बिक जाती है मिट्टी से ले कर मुल्क तलक
ला तू भी अपना माल दिखा देखें तिरे पल्ले में क्या है
कुछ ख़ुद्दारी कुछ बेबाकी कुछ हक़-गोई ख़ैर अच्छा है
जल्दी से ये सब कुछ बेच भी दे दाम इन का गिरने वाला है
फिर कोई न इन को पूछेगा
है वक़्त अभी कर के सौदा बेच औने-पौने ये कूड़ा
मौक़ा है यही रौशन कर ले मुस्तक़बिल अपने बच्चों का
ऐ अहमक़ इंसाँ होश में आ कुछ अक़्ल-ओ-ख़िरद की बातें कर
बे-फ़ैज़ न अपनी मेहनत कर बे-कार न अपनी रातें कर
कुछ धोका दे कुछ घातें कर
ऐ नग़्मा-गर
बेचेगा
बेचेगा ख़ुद को बेचेगा
हम तेरे ख़रीदार आए हैं
बोल अपनी क़ीमत क्या लेगा
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