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नज़्म
मैं कि मिरी ग़ज़ल में है आतिश-ए-रफ़्ता का सुराग़
मेरी तमाम सरगुज़िश्त खोए हुओं की जुस्तुजू!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब भी ख़िज़ाँ का राज है लेकिन कहीं कहीं
गोशे रह-ए-चमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आया हमारे देस में इक ख़ुश-नवा फ़क़ीर
आया और अपनी धुन में ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कोई ये पूछता क्यूँ आज कल कोई ग़ज़ल लिक्खी
न जाने बात क्या है इन दिनों कुछ ऐसा लगता है