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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
अभी तो गोद में हैं देवताओं की वो माह-ओ-साल
जो देंगे बढ़ के बर्क़-ए-तूर से हयात को जलाल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
नहीं हर चंद किसी गुम-शुदा जन्नत की तलाश
इक न इक ख़ुल्द-ए-तरब-नाक का अरमाँ है ज़रूर