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नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
खुलीं जो आँखें तो सर पे नीला फ़लक तना था
चहार-जानिब सियाह पानी की तुंद मौजों का ग़लग़ला था
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों
चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों