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नज़्म
यूँ तेरे दिल-ए-साफ़ में इशराक़-ए-मोहब्बत
जिस तरह कि लौ सुब्ह को दे दुर्रे-ए-नया-गोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
गोश्त मछली सब्ज़ियाँ बनिए का राशन दूध घी
मुझ को खाती हैं ये चीज़ें मैं ने कब खाया इन्हें
शकील आज़मी
नज़्म
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा