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नज़्म
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से न्यारा है
हर रुत हर इक मौसम इस का कैसा प्यारा प्यारा है
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
पिछली रात का चाँद दिखाई देता था कुछ यूँ तारों में
जैसे कोई जान बूझ कर कूद रहा हो अँगारों में
तख़्त सिंह
नज़्म
घड़ी की टिक-टिक बोल रही है रात के शायद एक बजे हैं
बटला हाउस की एक गली में मोटे कुत्ते भौंक रहे हैं
आसिम बद्र
नज़्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था