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नज़्म
रहेगी मेरे दिल में तेरी उल्फ़त कारगर कब तक
मुझे मसहूर रक्खेगा ये इश्क़-ए-बे-समर कब तक
अख़्तर शीरानी
नज़्म
अगर चाहें तो हम मुश्किल वतन की दम में हल कर दें
हज़ारों सूरतें कर सकते हैं हम कारगर पैदा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
लम्हा लम्हा है हयात-ए-कारगर का मो'तबर
सज्दा-सज्दा है दिल-ए-आशुफ़्ता-सर का मो'तबर
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
मस्ताना हाथ में हाथ दिए ये एक कगर पर बैठे थे
यूँ शाम हुई फिर रात हुई जब सैलानी घर लौट गए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनी
महँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी