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नज़्म
ख़िज़्र भी बे-दस्त-ओ-पा इल्यास भी बे-दस्त-ओ-पा
मेरे तूफ़ाँ यम-ब-यम दरिया-ब-दरिया जू-ब-जू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अंजुम-ए-कम-ज़ौ गिरफ़्तार-ए-तिलिस्म-ए-माहताब
देखता क्या हूँ कि वो पैक-ए-जहाँ-पैमा ख़िज़्र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें मुज़्महिल दिलों ने अबदी पनाह जाना
थके-हारे क़ाफ़िलों ने जिन्हें ख़िज़्र-ए-राह जाना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मसीह ओ ख़िज़्र की कहने को कुछ कमी ही नहीं
गुज़र भी जा कि तिरा इंतिज़ार कब से है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जादा-पैमा के लिए ख़िज़्र हो तुम ये रहज़न
तुम हो ख़िर्मन के निगहबान ये बर्क़-ए-ख़िर्मन
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
न उम्र-ए-ख़िज़्र न शोहरत न ख़्वाब की ता'बीर माँगूँगा
न दुश्मनों के ज़रर से न शर से दोस्तों के
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
एक ख़िज़्र-ए-अस्र-ए-हाज़िर इक कलीम-ए-अहद-ए-नौ
एक सद्र-ए-महफ़िल-ए-रुहानियाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
है तिरा ख़्वाब-ए-गिराँ दूरी-ए-मंज़िल का सबब
ख़िज़्र हमदर्द है उठ अज़्म-ए-सफ़र पैदा कर
रज़ी बदायुनी
नज़्म
ख़िज़्र की बेजा ख़ुशामद पे नहीं राज़ी हुनूज़
हाँ मगर ज़ेहन के पर्दे पे उभरते हैं सवाल