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असर पैदा कर

रज़ी बदायुनी

असर पैदा कर

रज़ी बदायुनी

MORE BYरज़ी बदायुनी

    जब्र का दौर है आहों में असर पैदा कर

    ज़ुल्मत-ए-शब से ही आसार-ए-सहर पैदा कर

    जौर-ए-मग़रिब से अंदाज़-ए-हज़र पैदा कर

    तख़्त-ए-बातिल जो उलट दें वो बशर पैदा कर

    ग़ैर को अपना बना ले वो नज़र पैदा कर

    संग-रेज़ों से गुहर-पाश गुहर पैदा कर

    इक नज़र देख के तू भाँप ले मक़्सद दिल का

    चश्म-ए-बीना में तफ़क्कुर का असर पैदा कर

    अपनी दुनिया तुझे दुनिया से बनानी है अलग

    आसमाँ तारे ज़मीं शम्स-ओ-क़मर पैदा कर

    है तिरा ख़्वाब-ए-गिराँ दूरी-ए-मंज़िल का सबब

    ख़िज़्र हमदर्द है उठ अज़्म-ए-सफ़र पैदा कर

    क्यों ज़माने के ख़म-ओ-पेच में उलझा है तू

    दिल में एहसास-ए-तबाही-ओ-ज़रर पैदा कर

    ग़म-ए-शमशीर है क्या दस्त-तही उठ नादाँ

    तू बहादुर है तो बे तेग़ ज़फ़र पैदा कर

    आरज़ू जिस की तुझे है वो निहाँ है तुझ में

    देखना हो तो सदाक़त की नज़र पैदा कर

    क़ुव्वतें अर्ज़-ओ-समा की हैं तिरी फ़ितरत में

    शाख़-ए-उम्मीद पे मक़्सद का समर पैदा कर

    अपने ईसार का ले संग-दिलों से बदला

    बात तो जब है कि पत्थर से गुहर पैदा कर

    क्यों है मायूसी-ए-पैहम से तिरा दिल मायूस

    बे-ख़बर अपनी दुआओं में असर पैदा कर

    क़ैद ख़ुर्शीद-ए-फ़लक-ताब की किरनें कर ले

    मुस्तक़िल अपनी शब-ए-ग़म में सहर पैदा कर

    जिंस-ए-उल्फ़त की जो दरकार ख़रीदारी है

    मीठा मीठा सा ज़रा दर्द-ए-जिगर पैदा कर

    अज़्म-ए-रासिख़ हो उलुल-अज़्म हो पहले ग़ाफ़िल

    फिर अगर चाहे तो पत्थर से शरर पैदा कर

    है तसर्रुफ़ में तिरे दहर की हर चीज़ 'रज़ी'

    उठ और उठ कर इन्हीं ज़र्रों से क़मर पैदा कर

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