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ग़म-ए-जम्हूर

मसूद अख़्तर जमाल

ग़म-ए-जम्हूर

मसूद अख़्तर जमाल

MORE BYमसूद अख़्तर जमाल

    रोचक तथ्य

    Being influenced by Faiz's couplets and letters exchanged with Sajjad Zaheer during his time in the Pakistan Jail.

    झुकेगा ख़ाक पे ये क़सर-ए-आसमाँ इक दिन

    हमारे ज़ेर-ए-क़दम होगी कहकशाँ इक दिन

    बढ़ेगा जानिब-ए-मंज़िल ये कारवाँ इक दिन

    फ़ज़ा-ए-अर्ज़-ओ-समा होगी हम-इनाँ इक दिन

    हयात-ए-ख़िज़्र मिलेगी हर एक ज़र्रे को

    हमारा नक़्श-ए-क़दम होगा जावेदाँ इक दिन

    अभी जो ख़िर्मन-ए-अहल-ए-वफ़ा पे गिरती हैं

    चराग़-ए-राह बनेंगी वो बिजलियाँ इक दिन

    ब-ईं यक़ीन ब-ईं एतिक़ाद-ए-हुस्न-ए-यकीं

    अभी तो आएगा वो अहद-ए-ख़ूँ-चकाँ इक दिन

    वो अहद जिस में अज़ाएम के सोज़-ओ-साज़ के साथ

    उठेगा सेना-ए-मज़दूर से धुआँ इक दिन

    हमारे ज़ौक़-ए-तजस्सुस की तिश्ना-कामी का

    ज़माना लेगा सर-ए-दार इम्तिहाँ इक दिन

    मिलेंगे भेस में रहज़न के रहबरान-ए-वतन

    फ़रेब देंगे हमारे ही पासबाँ इक दिन

    ये ज़र-परस्त कि हैं इंक़िलाब के दुश्मन

    मिटा के हम को बहुत होंगे शादमाँ इक दिन

    चमन पे फ़िरक़ा-परस्ती की आग बरसा कर

    ये फूँक देंगे हर इक शाख़-ए-आशियाँ इक दिन

    उन्हीं का तीर है वो 'गौडसे' हो या 'अकबर'

    हर एक बज़्म पे लचकेगी ये कमाँ इक दिन

    बनाएँगे यही जम्हूरियत के पर्दे में

    हमारे मुल्क पे ग़ैरों को हुक्मराँ इक दिन

    मनाएँगे ये ग़रीबों के ख़ून से होली

    उजाड़ देंगे किसानों की बस्तियाँ इक दिन

    ये जानशीन हैं रावन के इन की साज़िश से

    उठेंगी राम की अज़्मत पे उँगलियाँ इक दिन

    जिलौ में इन के वो सैलाब-ए-किशत-ओ-ख़ूँ होगा

    लरज़ उठेंगी हिमाला की चोटियाँ इक दिन

    बुतान-ए-दैर नदामत से सर-निगूँ होंगे

    उठेगी सेना-ए-नाक़ूस से फ़ुग़ाँ इक दिन

    स्रोत :
    • पुस्तक : Karwan-e-azadi (पृष्ठ 99)
    • रचनाकार : Masood Akhtar Jamal
    • प्रकाशन : Basmah Khatoon (1982)
    • संस्करण : 1982

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