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नज़्म
जो शम्अ-ए-इल्म-ए-मग़रिब सय्यद ने की थी रौशन
बिखरी हुई हैं जिस की किरनें हर अंजुमन में
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सहर के वक़्त जब ठंडी हवाएँ सरसराती हैं
चमन का रंग खिल जाता है कलियाँ मुस्कुराती हैं
शातिर हकीमी
नज़्म
कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों
चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों